मगध से

श्रीकांत वर्मा

मगध के लोग

मगध के लोग
मृतकों की हड्डियाँ चुन रहे हैं

कौन-सी अशोक की हैं?
और चन्द्रगुप्त की?
नहीं, नहीं,
ये बिम्बिसार की नहीं हो सकतीं
अजातशत्रु की हैं,

कहते हैं मगध के लोग
और आंसू
बहाते हैं

स्वाभाविक है

जिसने किसी को जीवित देखा हो
वही उसे
मृत देखता है
जिसने जीवित नहीं देखा
मृत क्या देखेगा?

कल की बात है –
मगधवासियों ने
अशोक को देखा था
कलिंग को जाते
कलिंग से आते
चन्द्रगुप्त को तक्षशिला की ओर घोड़ा दौड़ाते
आंसू बहाते
बिम्बिसार को
अजातशत्रु को
भुजा थपथपाते

मगध के लोगों ने
देखा था
और वे
भूल नहीं पाए हैं
कि उन्होंने उन्हें
देखा था

जो अब
ढूँढने पर भी
दिखाई नहीं पड़ते





उज्जयिनी

कालिदास ने
जिस गणिका से प्यार
किया था
उज्जयिनी में
कस्तूरी सी
बसी
हुई थी
क्या सुयोग था
उज्जयिनी थी
कालिदास थे
कस्तूरी थी

कभी-कभी
नक्षत्रयोग से
हो जाता है

अब ये किसको
ढूँढ
रहे हैं
महाकाल से
पूछ
रहे हैं –
कस्तूरी-सी
बसी हुई थी
जो,
क्या
यह
उसकी नगरी है

कालिदास ने जिस
गणिका से
प्यार किया था
क्या
इस रस्ते से
गुज़री है

रुको, रुको,
यह
किसका
शव है
क्षिप्रा जिसे
बहा
लाई
है





श्रावस्ती

चले गए जो श्रावस्ती को छोड़
वापस आयें –

अब भी भिक्षुक आते हैं
दोहराते हैं
दुःख से डरकर
चले गए जो
दुःख पायेंगे

जो आता है
दुःख पाता है
जो जाता है
दुःख पाता है

कोसल में उतना ही दुःख
जितना
श्रावस्ती में है

श्रावस्ती को छोड़ कोसल में बसने वाले
वापस आयें –
बोलना चाह रही श्रावस्ती
बोल नहीं पाती है





बुद्धकालीन गणिका का स्वप्न-भंग

हाथ फेरते ही ठनकते हैं,
स्तन

नाभि से उठती है, सुगंध

जंघा पर
होते हैं सवार
केवल बलिष्ठ
उतारते हैं
नदी में अश्व

ढूँढने आते हैं सुख अथाह
सेनापति,
युवराज।

मूर्छित होती हैं, वामाएँ!

मालती,
कल यह नहीं होगा
पीव में
भरे होंगे
स्तन,
जंघाएँ
स्मारकों की तरह
टूटी पड़ी होंगी

सिर्फ आहट
सुन सकोगी –
कौन?
सेनापति?
अथवा युवराज?

सूख चुकी होगी
सुख की नदी

ठट्ठा करेंगे वे
कल तक जो उतारते थे
अश्व।
तुम भी हंसोगी।

शव को नदी से निकाल
छोड़ जाते हैं लोग
घाट पर
और कहते हैं –
यह रहा काल

मालती को किसी ने नहीं देखा।

फेरते ही हाथ
ठनकते थे,
स्तन।

जंघा पर बलिष्ट
होते थे
सवार।
ढूँढने आते थे
अथाह सुख
युवराज।

मूर्छित होती थीं
वामाएँ।

क्या विडम्बना है
मालती,
कल भी तुम
मालती।