एक कविता, दो अनुवाद

विद्रोही

मोहनजोदड़ो
(प्रतिलिपि रश्मि गजरे और पटरीसिओ फेरारी)

मैं साईमन न्याय के कटघरे में खडा हूँ
प्रकृति और मनष्यु मेरी गवाही दें
मैं वहाँ से बोल रहा हूँ जहाँ
मोहनजोदडो के तालाब की आख़िरी सीढी है
जिस पर एक औरि की जली हुई लाश पडी है
और तलाब में इंसानों की हड्डियाँ बबखरी पडी हैं

इसी तरह से एक औरि की जली हुई लाश
बेबीलोतनया में भी ममल जाएगी
और इंसानों की बबखरी हुई हड्डियाँ मेसोपोटाममया में भी
मैं सोचिा हूँ और बार बार सोचिा हूँ
ताकि याद आ सके-
प्राचीन सभ्यिाओं केमहानेु पर
एक औरि की जली हुई लाश ममलिी है और
इंसानों की बबखरी हुई हड्डियाँ
इसका सिलसिला सीररया के चट्टानों से लेकर
बंगाल के मैदानों तक चला जाता है
और जो कान्हा के जंगलों से लेकर
सवाना के वनों तक फैला हुआ है.
एक औरत
जो माँ हो सकती है
बहन हो सकती है
बेटी हो सकती है
बीवी हो सकती है
मैं कहिा हूँ हट जाओ मेरे सामने से
मेरा ख़न जल रहा है,
मेरा कलेजा कलकला रहा है,
मेरी देह सलगु रही है,

मेरी माँ को, मेरी बीवी को,
मेरी बहन को, मेरी बेटी को मारा गया है जलाया गया है
उनकी आत्माएूँ आर्तनाद कर रही हैं आसमान में

मैं इस औरि की जली हुई लाश पर मसर पटककर
जान दे देता अगर मेरी एक बेटी न होती तो!
और बेटी है कि कहती है-
पापा तमु बेवज़ह ही हम लडकियों के बारे में झ्तने भावकु होत हो
"हम लडकियाँ तो लकडियाँ होती हैं जो बडी होने पर
चल्हे में लगा दी जाती हैं"
और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ
रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और
बंगाल के जुलाहों की भी या फिर
वियतनामी, फिलिस्तीनी, बच्चों की

साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होाता है चाहे रोमन साम्राज्य हो, बिटटश साम्राज्य हो
या अत्याधनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका यही काम होता है कि
पहाडों पर पठारों पर नदी किनारे
सागर तीरे इंसानों की हड्डियाँ बिखेरना

जो इतिहास को स़िर्फ तीन वाक्यों में
पूरा करने का दावा पेश करिा है कि
हमने धरती में शरारे भर दिए
हमने धरती में शोले भडका दिए
हमने धरिी पर इंसानों की हड्डियाँ बिखेर दीं!!

लबिन,
मैं इस इंसानों का वंशज इस बात की
प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूँ कि
जाओ और कह दो सीरिया के गलामों से
हम सारे गलामों को इकट्ठा करेंगे
और एक दिन रोम आएूँगे ज़रूर


मोहनजोदड़ो
(प्रतिलिपि सोम्रिता गांगुली)

मैं Simon, न्याय के कटघरे पे खड़ा हूँ
प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दे
मैं वहां से बोल रहा हूँ जहाँ मोहनजोदड़ो के तालाब की आखरी सीढ़ी है
जिस पर एक औरत की जली हुई लाश पड़ी है
और तालाब में इंसानों की हड्डियां बिखरी पड़ी हुई हैं
इसी तरह से एक औरत की जली हुई लाश आपको Babylonia में मिल जाएगी
और इसी तरह से इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां Mesopotamia में
मैं सोचता हूँ और बार बार सोचता हूँ
की आखिर क्या बात है
की प्राचीन सभ्यता के मुहाने पर
एक औरत की लाश मिलती है
और इंसानों की हड्डियां मिलती हैं
जिसका सिलसिला Kanha के वनों से लेकर Savannah के जंगलों तक चलता जाता है
और जो Scythia के चट्टानो से लेकर बंगाल के मैदानों तक फैला हुआ है
एक औरत जो माँ हो सकती है
बेहेन हो सकती है
बीवी हो सकती है
बेटी हो सकती है
मैं कहता तुम हट जाओ मेरे सामने से
मेरा खून कलकला रहा है
मेरा कलेजा सुलग रहा है
मेरी देह जल रही है
मेरी माँ को, मेरी बहन को, मेरी बीवी को, मेरी बेटी को मारा गया है
मेरी पुर्खानें आसमान में आर्तनाद कर रही है
मैं इस औरत की जली हुई लाश पर सर पटक कर जान दे देता
अगर मेरी एक बेटी न होती तो
और बेटी है की कहती है
Papa तुम बेवजह ही हम लड़कियों के बारे में इतनी भावुक होते हो
हम लड़कियां तोह लकड़ियां होती है
जो बड़ी होने पर चूल्हे में लगा दी जाती हैं
और ये इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
ये हड्डियां Roman गुलामो की भी हो सकती हैं
और बंगाल के जुलाहों के भी
वियतनामी या पलेस्तीनी या अत्याधुनिक इराकी बच्चों की भी
सम्राज सम्राज होता है
चाहे Roman साम्राज्य हो या British साम्राज्य
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका एक ही काम होता है
की पहाड़ों पर, पत्थरों पर
नदी किनारे, सागर तीरे
मैदानों में
इंसानों की हड्डियां बिखेर देना
जो सम्राज तीन वाक्यों में इतिहास को पेश करने का दावा करता है
की हमने धरती में शरारे भर दिए
की हमने धरती पर शोले भड़का दिए
की हमने धरती पर इंसानों की हड्डियां बिखेर दी
लेकिन मैं Spartacus का वंसज
Spartacus के प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूँ

की जो कह दो Caesar से की सारी दुनिया के गुलामो को इकठ्ठा करेंगे
और एक दिन Rome आएंगे ज़रूर
लेकिन हम कहीं नहीं जायेंगे
क्योंकि ठीक इसी समय जब ये कविता मैं आपको सुना रहा हूँ
लैटिन अमरीकी मजदूर महां साम्राज्य के लिए कबर खोद रहे है
और भारती मजदूर उसके पालतू चूहे के बिलों में पानी भर रहा है
Asia से लेके Africa तक
जो घृणा की आग लगी हुई है, दोस्त,
वह आग बुझ नहीं सकती
क्योंकि वह आग, वह आग एक औरत की जली हुई लाश की आग है
वह आग इंसानों की बिखरी हुई हड्डियों की आग है
इतिहास में पहली स्त्री की हत्या
उसके बेटे ने अपने बाप के कहने पर की
जमदग्नि ने कहा कि ओह परशुराम मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम अपनी माँ का बद करो
और परशुराम ने कर दिया
इस तरह से पुत्र, पिता का हुआ
और पितृसत्ता आयी
और तब पिता ने अपने पुत्रों को मारा
जान्हवी ने अपने वर से कहा कि मैं तुमसे कहती हूं
की तुम मेरी संतानों को मुझमे डुबो दो
और राजा शांतनु ने अपनी संतानों को गंगा में डुबो दिया
लेकिन शांतनु जान्हवी का नहीं हुआ
क्योंकि राजा किसी का नहीं होता
लक्ष्मी किसी की नहीं होती
धर्म किसी का नहीं होता
लेकिन राजा के सब होते हैं
गाय भी, गंगा भी, गीता भी, और गायत्री भी
और ईश्वर तोह खैर राजा के घोड़ों को घास ही छीलता रहा
बड़ा नेक था बेचारा ईश्वर
राजा का स्वामिभक्त
लेकिन अफ़सोस है की अब नहीं रहा
बहुत दिन हुआ मर गया
और जब मरा तो राजा ने उसे कफ़न भी नहीं दिया
दफ़न के लिए उसे दो गज ज़मीन भी नहीं दिया
किसीको नहीं पता है की ईश्वर कहाँ दफनाया गया
खैर ईश्वर मरा अंत में
और उसका मरना ऐतिहासिक सिद्ध हुआ
ऐसा इतिहासकारों का मत है
इतिहासकारों का मत ये भी है कि राजा भी मरा
रानी भी मर गयी, और उसका बेटा भी मर गया
राजा लड़ाई में मर गया
रानी कढाई में मर गयी
और बेटा कहते हैं कि पढाई में मर गया
लेकिन राजा का दिया हुआ धन रहा
और धन बचन हुआ
और धन बढ़ता गया
और फिर वही बात की
हर सभ्यता की मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश
और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां
ये लाश जली नहीं है, जलाई गयी है
ये हड्डियां बिखरी नहीं है, बिखेरी गयी है
ये आग लगी नहीं है, लगाई गयी है
ये लड़ाई छिड़ी नहीं है, छेड़ी गयी है
लेकिन कविता भी लिखी नहीं, लिखी गयी है
और जब कविता लिखी जाती है तोह आग भरक जाती है
मैं कहता हूँ तुम मुझको बचाओ मेरे लोगों इस आग से
मुझे इस आग से बचाओ मेरे पूरब के लोगों
जिनके सुन्दर खेतों को तलवार के ओखों से जोता गया
जिनकी फसलों को रथों के चक्को तले रगड़ा गया
तुम पश्चिम के लोगों मुझे बचाओ इस आग से
जिनकी स्त्रियों को बाजारों में बेचा गया
जिनके बच्चों को चिमनियों में झोंका गया
तुम उत्तर के लोगों मुझे बचाओ इस आग से
जिनके पुर्वो के पीठ पर पहाड़ तोड़ा गया
तुम सुदूर दक्षिण के लोगों मुझे बचाओ इस आग से
जिनकी बस्तियों को घी में झोंका गया
जिनकी नाव को आकुल जलराशियों में डुबोया गया
तुम ये सारे लोग मुझे मिलकर बचाओ
जिनके खून से पिरामिड बने, मीनारे बने, दीवारें बनी
क्योंकि मुझको बचाना, उस स्त्री को बचाना है
जिसकी लाश मोहनजोदड़ो की तलब की आखरी सीढ़ी पर पड़ी है
मुझको बचाना उन इंसानों को बचाना है
जिनकी हड्डियाँ तालाब में बिखरी पड़ी हैं
मुझको बचाना अपने पुरखों को बचाना है
मुझको बचाना, अपने बच्चों को बचाना है
तुम मुझे बचाओ
मैं तुम्हारा कवी हूँ